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प्राचीन छात्र एसोसिएशन अपने उद्देश्यों के प्रति सदैव सजग संस्था ।

उदय प्रताप कालेज की स्थापना पूज्य राजर्षि ने सन् 1909 मं ‘हिवेट क्षत्रिय स्कूल’’ के रूपमें की थी। राजर्षि अदम्य उर्जा से सम्पन्न होने पर भी अशिक्षा के अंधकार में निज स्वप्न को भूल चुकी क्षत्रिय जाति में शिक्षा का प्रचार-प्रसार करना चाहते थे। 14 जुलाई 1913 को राजर्षि के स्वर्गारोहण के पश्चात कालेज के तत्कालीन प्राचीन छात्रों ने ‘‘प्राचीन छात्र परिषद’’ नाम से संस्था का गठन किया। जिसका उद्देश्य पूज्य राजर्षि के जीवन-मूल्यों को आगे बढ़ाना था। अपनी स्थापना के समय ही इस संस्था ने अपना उद्देश्य निश्चित कर लिया था। उदय प्रताप कालेज की यह संस्था अपने ढंग की एक विशिष्ट संस्था है। वर्तमान समय में यह संस्था ‘प्राचीन छात्र एसोसिएशन’ नाम से अपने उद्देश्यों के प्रति निरन्तर समर्पित है। इस संस्था की गतिविधियों को देख यह कहा जा सकता है कि शायद ही किसी विद्यालय को इस प्रकार की सहयोग परायण और कार्य-तत्पर संस्था के प्राप्त होने का सौभाग्य प्राप्त हो। संस्था द्वारा किये गये कतिपय महत्त्वपूर्ण कार्यों का विवरण:-

1. राजर्षि मन्दिर की स्थापना:- प्राचीन छात्र परिषद अपने गठन के साथ ही राजर्षि मन्दिर निर्माण हेतु संकल्पित रहा, और यह सपना पूरा हुआ सन् 1934 में। विद्यालय भवन के सामने भव्य मन्दिर एवं मूर्ति के निर्माण का कार्य सन् 1932 से प्रारम्भ हुआ और 23 नवम्बर 1934 को रायबरेली के राजा रामपाल सिंह द्वारा इसका उद्घाटन किया गया। आगे परिषद द्वारा भिनगाराज अनाथालय में सन् 1979 में तथा भोजूबीर तिराहे पर सन् 1999 में राजर्षि मूर्ति का निर्माण कराया गया।

2. प्राचीन छात्र भवन का निर्माण:- पहले प्राचीन छात्र परिषद का कार्यालय विद्यालय का एक भवन था। राजर्षि मन्दिर निर्माण से उत्साहित होकर उसी समय प्राचीन छात्र भवन के निर्माण का संकल्प लिया गया। प्रबल संकल्प शक्ति के मार्ग को कोई बाधा नहीं रोक सकती है। मन्दिर स्थापना के सात वर्ष बाद 1941 में प्राचीन छात्र भवन बनकर तैयार हो गया। यह भवन कालेज के विगत इतिहास का साक्षी रहा है। इसी भवन में रहते हुए डाॅ0 शम्भुनाथ सिंह ने अपना अमर गीत लिखा था-‘‘समय भी शिला पर मधुर चित्र कितने, किसी ने बनायें, किसी ने मिटाये। आगे चलकर इस प्राचीन भवन से सटे एक नवीन भवन का निर्माण कराया गया जिसका उद्घाटन मुम्बई के पुलिस कमिश्नर श्री एम.एन. सिंह ने अप्रैल 2002 में किया। इस भवन के निर्माण में बाबू परमानन्द सिंह, त्रिलोक नाथ सिंह, चेतनारायण सिंह, श्री सागर सिंह, श्री कृष्ण प्रताप सिंह की महती भूमिका रही है।

3. विद्यालय-भवनों के निर्माण में सहयोग:- प्राचीन छात्र एसोसिएशन ने समय-समय पर विद्यालय के विभिन्न भवनों के निर्माण में आर्थिक सहयोग किया है। सन् 1964 में जब डिग्री कालेज का विज्ञान भवन बन रहा था, उस समय एसोसिएशन द्वारा एकमुश्त 50,000/-(पचास हजार रू0) का सहयोग प्रदान किया गया। इसी के साथ राजर्षि शिशु विहार के निर्माण के समय भी आर्थिक सहायता की गई थी। इसके अतिरिक्त डिग्री कालेज में पेयजल व्यवस्था एवं विद्युतीकरण के मद में भी सहयोग किया गया था।

4. राजर्षि स्मारक ग्रन्थ का प्रकाशन:- विद्यालय स्थापना के स्वर्ण जयन्ती के अवसर पर प्राचीन छात्र एसोसिएशन द्वारा सन् 1959 में ‘‘राजर्षि स्मारक ग्रन्थ’’ का प्रकाशन कराया गया। इसका सम्पादन डाॅ0 मोती सिंह ने किया था। ग्रन्थ में विस्तार के साथ राजर्षि के पूर्वज, जन्म तथा शैषव, व्यक्तित्व और विचार के साथ उनके सस्मरण तथा राजर्षि द्वारा स्थापित और सहायता प्राप्त संस्थाओं का विवरण प्राप्त किया गया है।

5. प्राचीन छात्र निदेशिका का प्रकाशन:- राजर्षि स्मारक ग्रन्थ के साथ प्राचीन छात्र एसोसिएशन का एक और प्रकाशन भी अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है। डाॅ0 राम लोचन सिंह तथा ठा0 लुटावन सिंह के सम्पादकत्व में प्राचीन छात्र निदेशिका का प्रकाशन एक ऐसा महत्त्वपूर्ण कार्य रहा, जो कभी नहीं दिखता है। विद्यालय के स्थापना काल से लेकर प्रकाशन वर्ष तक के यहाॅ के सभी छात्रों की जन्मतिथि एवं उनके मूल पते का प्रकाशन ग्रन्थ में किया है।

6. छात्रवृत्ति कोष का निर्माण:- प्राचीन छात्र एसोसिएशन द्वारा 1935 में छात्रवृत्ति कोष की स्थापना की गई, जिसके माध्यम से मेधावी किन्तु आर्थिक दृष्टि से कमजोर छात्रों की मदद की जाती रही। बीच में किन्हीं कारणों से इस कार्य में व्यवधान आया किन्तु 1978 से पुनः इसे प्रारम्भ किया गया और समय-समय तक विद्यालय के प्रत्येक संस्थाओं के मेधावी छात्र-छात्राओं को एसोसिएशन के द्वारा छात्रवृत्ति प्रदान की जाती है।

7. कोरोना काल में की गई मदद:- वैश्विक आपदा कोरोना के समय एसोसिएशन द्वारा लम्बे समय तक भोजन तैयार कराकर जरूरतमन्दों को वितरित किया गया, एवं प्रधानमंत्री राहत आपदा कोष में एक लाख रू0 का दान एसोसिएशन ने दिया। एसोसिएशन के इन कार्यों की प्रसंशा प्रधानमंत्री ने स्वयं पत्र भेजकर की है।

8. प्राचीन छात्रों के आवास तथा माॅगलिक कार्यों हेतु सुविधा प्रदान करनाः- एसोसिएशन के नवीन भवन में सज्जित कक्ष है। प्राचीन छात्र कभी भी अग्रिम सूचना देकर इसे आवंटित करा सकते है। मांगलिक अवसरों के लिए दोनों भवनों की बुकिंग कराई जा सकती है। तुलनात्मक दृष्टि से बाजार से बहुत कम रेट पर ये सुविधाएॅ यहाॅ उपलब्ध है।

9. क्षत्रिय मित्र पत्रिका का प्रकाशन:- पूज्य राजर्षि ने ‘‘क्षत्रिय महासभा’’ की स्थापना के साथ ही ‘‘क्षत्रिय मित्र’’ नामक पत्रिका का प्रकाशन कराया था। इस हेतु उन्होंने संचित निधि के रूप में दान भी दिया था। राजर्षि जी के दिवगंत होने के बाद पत्रिका के प्रकाशन का दायित्व प्राचीन छात्र एसोसिएशन ने संभाला। प्रारम्भ में यह पत्रिका क्षत्रिय समाज के उत्थान एवं नवोनोषी विचारों तक सीमित रही किन्तु आगे चलकर डाॅ0 शम्भुनाथ सिंह और त्रिलोचन जी जैसे साहित्यकारों ने जब इसके संपादन की जिम्मेदारी ली तो पत्रिका साहित्यिक हो गयी। सन् 1950 तक यह पत्रिका नियमित प्रकाशित होती रही। बीच में श्री चेतनारायण सिंह ने इसके कुछ अंक प्रकाशित कराये। वर्तमान में पिछले छः वर्षों से पत्रिका वार्षिक के रूपमें डाॅ0 राम सुधार सिंह के सम्पादकीय में नियमित प्रकाशित हो रही है। पत्रिका का उद्देश्य राष्ट्र तथा समाज के उत्थान हेतु वैचारिक मंच उपलब्ध कराना है।

10. कौस्तुभ सम्मान समारोह:- विद्यालय के प्राचीन छात्रों की एक महान परम्परा है, परन्तु समय के कालखण्ड में उसमें कुछ शिथिलता का अनुभव वर्तमान एसोसिएशन को दृष्टिगत हुआ और प्राचीन छात्र एसोसिएशन के भागरिथ प्रयास से विद्यालय से निकले अति प्राचीन रत्नों की तलाश करके उनसे आत्मीयता और अनुभवों की सोच ने कौस्तुभ सम्मान समारोह करने का संकल्प किया और इसी क्रम में 2015 से 75 वर्ष से अधिक उम्र के प्राचीन छात्रों को सम्मानित करने के लिए पुरानियों के संगम का त्योहार कौस्तुभ सम्मान समारोह के रूप में प्रारम्भ हुआ, और आज हम इसमें निरन्तरता बनाये हुए है।

प्राचीन छात्र एसोसिएशन अपने उद्देश्यों को लेकर लगातार सक्रिय संस्था है। विद्यालय के चतुर्दिक विकास के साथ संस्था का जुड़ाव सामाजिक सरोकारों से भी जुड़ी हुई है। संस्था के सभी पदाधिकारी अवैतानिक हैं और पूज्य राजर्षि के मूल्यों के प्रति पूर्णतः समर्पित है।