राजर्षि उदय प्रताप सिंह जू-देव (सोमाया जी)

राजर्षि उदय प्रताप सिंह जू-देव (सोमाया जी) का संक्षिप्त जीवन परिचय:-

राजर्षि उदय प्रताप सिंह जू-देव का जन्म 3 सितम्बर 1850 में हुआ था, उदय प्रताप सिंह जी की शिक्षा लखनऊ के कोर्ट आफ वाडर््स इन्स्टिट्यूट में हुई। अपने पिता राजा कृष्ण दत्त सिंह जी की मृत्यु के बाद सन् 1862 में उदय प्रताप सिंह जी भिनगा के राजा बने।

राजर्षि जी ने गृहस्थ आश्रम में 19 वी साल में प्रवेश किया, सन् 1870 में मिर्जापुर जिला अन्तर्गत अगोरी बड़हर के अधीश्वर चन्देल वंशीय श्रीमान् राजा रघुनाथ शाह देव की कनिष्ठ पुत्री के साथ आपका शुभ विवाह सम्पन्न हुआ। सौभाग्यवश रानी साहिबा भी आपके अनुकूल, रूप-गुण सम्पन्न एवं विदुषी सहधर्मिणी थी। राजर्षि उदय प्रताप सिंह जू-देव के तीन पुत्र तथा दो पुत्रियाॅ थी, सबसे छोटे राजकुमार बहुत ही अल्प अवस्था में स्वर्गवासी हो गये।

जेष्ठ पुत्र श्री सुरेन्द्र विक्रम सिंह जी को भरी जवानी में पिता व माता के गोद से ईश्वर ने छिन लिया। द्वितिय राजकुमार श्री महेन्द्र विक्रम सिंह जी ने अपने भाई के मृत्यु के बाद राजभार संभाला। लगभग 7 साल राजभार संभालने के साथ ही आपभी कच्ची उम्र में अपने भाई के अनुगामी हो गये।

इन सारे विपदाओं के बावजूद भी राजर्षि जी अपने पथ से विचलित नही हुये। उनकी साधना मंे कोई असर नहीं पड़ा, वरन् व इस शोकाग्नि में और भी निखर गई। कौन जानता था कि इस शोक की प्रक्रिया स्वरुप एक दिन मंगल का अभ्यूदय होगा।

विधि के विधान द्वारा घटित आपदा से व्यथित होकर परम् पूज्य राजर्षि उदय प्रताप सिंह जू-देव एवं महारानी ने यह निर्णय लिया कि क्षत्रिय समाज के लिए हम एक ऐसी संस्था का निर्माण करें जिसमें शिक्षित/प्रशिक्षित युवक देश एवं समाज के निर्माण के लिए कृत संकल्प हो। इसी भावना की प्रेरणा स्वरूप काशी/वाराणसी में पूज्य राजर्षि जी ने क्षत्रिय समाज के कल्याण हेतु हिवेट क्षत्रिया स्कूल इण्डाउमेण्ट ट्रस्ट वाराणसी की स्थापना सन् 14.12.1908 में की।

हाईस्कूल तक की कक्षाओं को सूचारु रूप से चलाने के लिए राजर्षि जी ने 10.5 लाख रू0 चैरिटेबुल इण्डाउमेण्ट फण्ड में दान किया। विद्यालय की पूर्ण व्यवस्था के लिए लगभग 51.5 एकड़ भूमि का क्रय भी किया। इसके अतिरिक्त नये भवन एवं छात्रावासों के निर्माण के लिए 1.76000/-रू0 दान दिया था। 25 नवबंर 1909 को उत्तर प्रदेश के तत्कालीन गर्वनर सर जान हिवेट द्वारा सर हिवेट क्षत्रिया स्कूल का उद्घाटन हुआ। उद्घाटन समारोह में राजर्षि उदय प्रताप सिंह जूदेव काशी में रहते हुये भी आयोजन में सम्मिलित नही हुये थे, क्यों कि जीवन के अन्तिम दिनांे में उन्होंने सन्यास ग्रहण कर लिया था। उद्घाटन समारोह के अवसर पर राजर्षि ने एक संदेश दिया था। जो निश्चय ही आप की महती आकांक्षा क्रान्तिदर्शिता और निरभिमानता का परिचय दिया है।

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14 जुलाई 1913 को राजर्षि जी के दिवंगत हो जाने विद्यालय की व्यवस्था व विकास का भार महारानी महोदया के उदार कंधो पर पड़ा। और हमें गर्व है कि पूज्या भिग्नेश्वरी सच्चे अर्थों में अपनी पति की अनुगामिनी थी। अतः आपने विद्यालय की आर्थिक स्थिति को मजबूत करने के लिए विद्यालय की संचित निधि 200000/- का योग देकर उसे 1250000/- कर दिया। सन् 1921 में इण्टरमिडिएट की कक्षाऐं प्रारम्भ हुई, तब पूज्य भिन्गेश्वरी ने तत्काल रूपया 75000/- विज्ञान प्रयोगशाला निर्माण के लिए दिया, और संचित निधि में 600000/- की अतिरिक्त वृद्धि कर दी। इस प्रकार विद्यालय के पास 1850000/- रू0 इण्डाउमेण्ट फण्ड में जमा हो गयी। उदय प्रताप कालेज, शिक्षण संस्था की विभिन्न इकाइयों के साथ ही राजर्षि उदय प्रताप सिंह जी ने वाराणसी एवं अन्य संस्थान में विभिन्न संस्थाओं को भी आर्थिक सहयोग देकर पालन पोषण किया था, ये संस्थाऐ निम्न है।

1. नगरी प्रचारिणी सभा वाराणसी

2. भिनगाराज आनाथालय कमच्छा

3. राजर्षि पुस्तकालय बहराइच

4. लायल हाल, बहराइच

5. काल्विन ताल्लुकदार स्कूल, लखनऊ

6. बौद्ध मंदिर, सारनाथ

7. कन्या पाठशाला, काशी

8. मेडिकल कालेज, लखनऊ

9. क्षत्रिय छात्रावास, कलकत्ता

10. महेन्द्रवी छात्रावास, काशी हिन्दु विश्वविद्यालय, वाराणसी।

11. दण्डी स्वामी मठ, काशी

पूज्य राजर्षि जी ने काशी में रामकृष्ण मिशन की स्थापना में भी आर्थिक सहयोग किया था। इसी क्रम में स्वामी विवेकानन्द जब काशी आये थे तो पूज्य राजर्षि जी से मिलने उनके आवास पर गये थे।